अंतरिक्ष में खेती:- विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत ने एक और बड़ी छलांग लगाई है। अब भारतीय बीज अंतरिक्ष में भेजे गए हैं ताकि यह परखा जा सके कि अंतरिक्ष में खेती (Space Farming) करना कितना संभव है। यह प्रयोग NASA (नासा) और भारतीय अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से किया गया है। इस पहल का उद्देश्य भविष्य में चंद्रमा (Moon Farming) और मंगल ग्रह पर खेती (Farming on Mars) को साकार बनाना है।

अब अंतरिक्ष में होगी खेती की तैयारी, NASA के साथ भेजे गए भारतीय बीज
NASA और भारत का संयुक्त मिशन
भारतीय बीजों को अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA के एक मिशन के तहत अंतरिक्ष में भेजा गया है। इसमें भारत के रिसर्चर्स, वैज्ञानिकों और छात्रों ने अहम भूमिका निभाई है। यह मिशन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर बीजों के व्यवहार का अध्ययन करेगा।
इस मिशन की खास बातें:
भारतीय देसी बीज जैसे – गेहूं, चना, मसूर और सरसों को शामिल किया गया है।
बीजों को अंतरिक्ष में भेजने के बाद उनके अंकुरण, विकास और उत्पादन क्षमता का परीक्षण किया जाएगा।
NASA का उद्देश्य है कि दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों में खाद्य आपूर्ति की व्यवस्था पृथ्वी से बाहर भी सुनिश्चित की जा सके।
अंतरिक्ष में खेती क्यों जरूरी है?
1. लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए खाद्य आपूर्ति की जरूरत
चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों की यात्रा में कई महीनों या वर्षों तक का समय लगता है। ऐसे में यात्रियों के लिए सिर्फ पृथ्वी से खाद्य सामग्री ले जाना संभव नहीं होता।
2. सेल्फ-सस्टेनेबल स्पेस मिशन की ओर एक कदम
यदि अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में ही अनाज, सब्जी या अन्य खाद्य सामग्री उगा सकें तो यह एक स्वावलंबी प्रणाली होगी।
3. भविष्य में अंतरिक्ष कॉलोनी के लिए तैयारी
भविष्य में अगर मंगल या चंद्रमा पर मानव बस्तियां बसती हैं, तो वहां स्थानीय खेती की व्यवस्था अनिवार्य होगी।
Axiom Mission 4 क्या है?
Axiom Space और NASA के सहयोग से, यह एक निजी अंतरिक्ष मिशन है जिसने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की ओर उड़ान भरी। इस मिशन में विज्ञान, तकनीक और स्वास्थ्य से जुड़े कई प्रयोग किए जा रहे हैं। इन प्रयोगों की सूची में केरल कृषि विश्वविद्यालय के बीज भी शामिल हैं।
अंतरिक्ष में बीजों के साथ क्या होता है?
अंतरिक्ष में बीजों को विशेष परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जैसे:
शून्य गुरुत्वाकर्षण (Microgravity)
कड़ी विकिरण (Radiation)
तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव
इन सभी कारकों का बीजों की गुणवत्ता, अंकुरण दर और विकास पर असर पड़ता है। NASA इस बात की स्टडी कर रहा है कि किन बीजों में इस वातावरण को सहने की क्षमता है।
भारत से कौन-कौन से बीज भेजे गए हैं?
भारतीय देसी बीज जिनका चयन किया गया है:
गेहूं (Wheat)
चना (Chickpea)
मसूर (Lentil)
सरसों (Mustard)
किशनभोग चावल (Kishan Bhog Rice) – एक बासमती प्रजाति
बीटी कपास (Bt Cotton)
इन बीजों को खासतौर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और कुछ निजी संस्थानों ने मिलकर तैयार किया है।
कौन-कौन से संस्थान हैं इस मिशन में शामिल?
प्रमुख संस्थान:
NASA (अमेरिका)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI)
इसरो (ISRO)
भारतीय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान
सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई – जहां के छात्रों ने बीज चयन में योगदान दिया
बीजों का परीक्षण कैसे होगा अंतरिक्ष में?
बीजों को स्पेशल कंटेनर में रखकर International Space Station (ISS) भेजा गया है।
ISS पर मौजूद वैज्ञानिक इन बीजों को अंकुरित करने की प्रक्रिया करेंगे।
उनके विकास के विभिन्न चरणों की निगरानी की जाएगी।
यह देखा जाएगा कि कौन सा बीज कम गुरुत्वाकर्षण और विकिरण में अच्छे परिणाम देता है।
वापस लाए गए बीजों की धरती पर पुनः परीक्षण (Post-space analysis) किया जाएगा।
Space Farming पर पहले हुए प्रयास
NASA और अन्य एजेंसियों ने इससे पहले भी कई बार lettuce, radish, wheat आदि फसलों को अंतरिक्ष में उगाया है। लेकिन यह पहली बार है कि भारतीय बीजों का इतना संगठित तरीके से प्रयोग किया गया है।
इस मिशन के संभावित लाभ क्या होंगे?
1. खाद्य सुरक्षा
अगर अंतरिक्ष में खेती संभव हुई तो यह भविष्य के मिशनों की खाद्य सुरक्षा के लिए वरदान होगा।
2. जैविक अनुकूलता का ज्ञान
अंतरिक्ष जैसी विषम परिस्थिति में जैविक अनुकूलता (Biological Adaptation) की बेहतर समझ विकसित होगी।
3. कृषि में नई तकनीक का विकास
अंतरिक्ष में होने वाले प्रयोगों से जो अनुभव मिलेगा, वह धरती की कृषि में भी नवाचार ला सकता है।
4. भारत की वैज्ञानिक क्षमता को अंतरराष्ट्रीय पहचान
इस मिशन से भारतीय छात्रों और शोधकर्ताओं को वैश्विक मंच पर पहचान मिलेगी।
अंतरिक्ष में खेती के लिए क्या चुनौतियाँ होंगी?
जल की उपलब्धता और प्रबंधन
मृदा या ग्रोथ मीडियम की कमी
रोशनी और तापमान का नियंत्रण
उर्वरकों का सीमित उपयोग
संक्रमण या फफूंद जनित रोग
इन सभी का समाधान तलाशना अंतरिक्ष कृषि को व्यावहारिक बनाने के लिए जरूरी है।
भारत सरकार की भूमिका
भारत सरकार इस मिशन में ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत के विज़न को आगे बढ़ा रही है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट को फंडिंग, तकनीकी सहयोग और नीति समर्थन दिया है।
इस शोध से छात्रों को क्या मिलेगा?
इंटरनेशनल स्पेस मिशन में भागीदारी
रिसर्च और इनोवेशन के अवसर
वैज्ञानिक सोच और नवाचार को बढ़ावा
रोजगार और स्टार्टअप की संभावनाएं
निष्कर्ष : अंतरिक्ष में खेती का सपना अब साकार
यह प्रयोग केवल एक वैज्ञानिक मिशन नहीं है, बल्कि भविष्य की मानव सभ्यता की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। भारतीय बीजों का चयन और अंतरिक्ष में भेजा जाना इस बात का प्रमाण है कि भारत अब वैश्विक अंतरिक्ष शोध में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
अगर यह प्रयोग सफल रहता है, तो आने वाले समय में ‘मंगल पर भारतीय गेहूं’ और ‘चंद्रमा पर देसी चना’ उगते देखना कोई कल्पना नहीं, बल्कि सच्चाई हो सकती है।
FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
Q1. क्या अंतरिक्ष में पहले भी बीज भेजे गए हैं?
हाँ, NASA और अन्य एजेंसियां पहले भी कई बीज भेज चुकी हैं, लेकिन भारतीय देसी बीजों का यह पहला संगठित प्रयोग है।
Q2. भारतीय बीजों को क्यों चुना गया?
भारतीय बीज अधिक सहनशील, रोग प्रतिरोधक और जलवायु अनुकूल होते हैं, इसीलिए उन्हें अंतरिक्ष प्रयोग के लिए उपयुक्त समझा गया।
Q3. क्या अंतरिक्ष में पूरी तरह खेती संभव है?
पूरी तरह नहीं, लेकिन नियंत्रित वातावरण में सीमित मात्रा में खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है, और यही परीक्षण का उद्देश्य है।